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पीने के पानी में जहर घोलने के लिए लुधियाना की डाइंग इंडस्ट्री को सरकार ने दी 22 .50 करोड़ की सब्सिडी

ताजपुर रोड की डाइंगों का पानी है 100 एमएलडी से ज्यादा और प्लांट बनाया मात्र 50 एमएलडी का
– आपसी मतभेद से तथ्य आए सामने
नेशनल डेस्क (24 फरवरी) इंसान किस कदर दूसरों को जहर देकर अपने परिवार को खुशियां देना चाहता है इसका उदाहरण लुधियाना की ताजपुर रोड पर लगी डाइंग इंडस्ट्री में देखने को मिल सकता है। हालांकि लुधियाना के विभिन्न क्षेत्रों में 400 से भी ज्यादा लगी डाइंग इंडस्ट्री भी ऐसा ही काम कर रही है। लेकिन अभी तथ्यों के आधार पर जो चीज सामने आई है वह ताजपुर रोड की है। जिसमें 50 मिलियन लीटर डेली (एमएलडी ) पानी को साफ करने का एक कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंट ( सीईटीपी) प्लांट लगाया गया है। जबकि वहां पानी 100 एमएलडी से भी ज्यादा पहुंच रहा है। इसीलिए आए दिन प्लांट को मेंटेनेंस या तकनीकी खराबी का बहाना लगाकर बंद रखा जाता है। 50 एमएलडी के पानी को तो वहां बने सीमेंट के बड़े टैंक में स्टोर कर लिया जाता है और बाकी के पानी को ओवरफ्लो करके बिना ट्रीट किए बुड्ढे नाले में फैंक दिया जाता है और वहां से आगे यह पानी सीधा सतलुज में जाता है जो कि पूरे शहर के साथ-साथ सतलुज और सतलुज के बाद हरिके पतन होते हुए राजस्थान को भी जहरीला पानी पीने पर मजबूर किया जा रहा है। पीने का पानी साफ रहे इसलिए केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री आफ एनवायरनमेंट ,फॉरेस्ट एवं क्लाइमेट चेंज विभाग ने 50 एमएलडी का प्लांट लगाने के लिए 15 करोड रुपए और राज्य सरकार ने 7.50 करोड रुपए की सब्सिडी दी थी। पानी साफ तो नहीं हुआ लेकिन उद्योगपतियों ने यह 22.50 करोड रुपए डकार कर फिर से लोगों को जहर पिलाना जरूर शुरू कर कर दिया।
पानी के ओवरफ्लो होने का मामला उस समय सामने आया जब ताजपुर रोड पर लगी कृष्णा प्रोसेसर के यहां पर पंजाब डायर्स संगठन (पीडीए) के पदाधिकारी उसकी मशीनों की जांच करने पहुंचे और वहां पर सीवरेज ओवरफ्लो पाया गया। पीडीए डायरेक्टर विमल नारंग ने आरोप लगाया कि कृष्ण प्रोसेसर के पास रोजाना 700 किलो इस्तेमाल करने की कंसेंट है, जिसे वह इस्तेमाल करने के बाद ट्रीटमेंट के लिए प्लांट को भेजेंगे। लेकिन इनके मीटर के हिसाब से रोजाना 310 किलो लीटर पानी ही प्लांट तक आ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे साफ है कि बाकी का पानी बिना ट्रीट किए यह बुड्ढे नाले में डाल रहे हैं जिस कारण आज इनकी सच्चाई ओवरफ्लो हो रहे सीवेज के जरिए सामने आ गई। दूसरी और कृष्णा प्रोसेसर के सुनील कुमार ने आरोप लगाया कि उनके यहां से जितना पानी निकलता है उस हिसाब से पीडीए के जनरल सेक्रेटरी बॉबी जनरल और कमल चौहान ने उन्हें शेयर नहीं दिए। जिस कारण उन्होंने पुलिस में शिकायत दी और जांच में पाया कि वह दोषी है और जिस कारण उन पर एफआईआर दर्ज हो गई। कोर्ट ने भी तथ्यों के आधार पर उनकी जमानत रद्द कर दी। इसी का बदला लेते हुए इन्होंने आज मेरे परिसर में आकर छापामारी करने की कोशिश की जबकि यह सीवरेज मेरा नहीं था। मैं आज भी जांच करवाने के लिए तैयार हूं कोई भी एजेंसी आकर मेरे फैक्ट्री में जांच कर सकती है लेकिन इन्हें मेरी फैक्ट्री में आने का अधिकार किसने दिया इस संबंध में मैं जल्द ही कानूनी कार्रवाई पर करूंगा।
यहां बता दे की ताजपुर रोड पर पानी ओवरफ्लो होने का या पहला मामला नहीं है।ऐसे दर्जनों मामले पकड़े जा चुके हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड सिर्फ जुर्माना लगाकर उन्हें छोड़ चुका है। इतना ही नहीं 50 एमएलडी के लगे प्लांट से भी कई बार पानी ओवरफ्लो होते हुए पकड़ा गया है। हाल ही में पर्यावरण विद् संत सींचेवाल ने ताजपुर रोड पर ही 50 एमएलडी के प्लांट से बिना ट्रीट किए पानी को ओवरफ्लो कर इलीगल सीवरेज में फेंकते हुए पकड़ा। इसके बाद से पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अफसर और पीडीए के अधिकारियों के हाथ पैर फूल गए और उन्होंने मामले को दबाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। बोर्ड ने भी अपनी जान बचाने के लिए कागजों में ही नोटिस को जारी कर ऐलान कर दिया की सीईटीपी की सभी सदस्य डाइंग इंडस्ट्री तब तक नहीं चलेगी जब तक कि उनके सीवरेज सिस्टम सही नहीं हो जाते और पानी ओवरफ्लो होना बंद नहीं हो जाता। दूसरी और पीडीए के पदाधिकारी अपने को जनता की नजर में सही दिखाने के लिए। खुद बाजार में बात करने लगे कि वह स्वयं से फैक्ट्री को बंद कर रहे हैं ताकि सीवरेज की पाइप को दुरुस्त किया जा सके। यहां बता दें कि फैक्ट्रियां बंद करने का जो नोटिस बोर्ड ने जारी किया था उसकी कॉपी PUNJABPOLLUTION.COM के पास मौजूद है।
यहां यह भी जिक्र करने योग्य है जो लोग दूसरों का इलीगल सीवरेज पकड़ने गए थे वह भी कई बार इलीगल तरीके से पानी फेंकते हुए पकड़े गए हैं। जिन में पीडीए के जनरल सेक्रेटरी बॉबी जिंदल भी अपनी फैक्ट्री से पानी को अंडरग्राउंड इलीगल पाइप डालकर ओवरफ्लो करते हुए कई बार पकड़े गए हैं। यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो यह प्लांट सिर्फ आईवॉश है। इसकी आड़ में लोगों को किस तरह पीने वाले पानी में जहर मिलाकर देने वाले डाइंग कारोबारी करोड़ों रुपए कमा कर अपने परिवार को खुश रखने की सोच रहे हैं जबकि वह भूल गए हैं कि ऊपर वाला भी देख रहा रहा है।

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