लुधिआना अब सबसे अधिक प्रदूषित शहर ही नहीं बल्कि अब इसकी ज़मीन भी ज़हरीली केमिकलों से बर्बाद होनी शुरू हो गई है , वायर ड्राइंग इंडस्ट्री में करीब 100 ऐसी इकाइयां है जो रोज़ाना करोडो लीटर पानी ज़मीन में बिना ट्रीट किये सीधे डाल रही है और लोगो को इसके बदले में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां प्रदान कर रही है , इन्हे रोकने के लिए किसी भी अधिकारी में भी दम नहीं है , क्यूंकि इन इकाइयों के मालिकों की पहुंच बहुत ऊपर तक है और वह नीचे से लेकर ऊपर तक सभी अधिकारिओं को अपने पैसे के दम पर अपने जेब में रखे हुए है, इस लिए इन पर हाथ डालने से पहले कई बार अधिकारिओं को सोचने पर मज़बूर होना पड़ता है ,ये वायर ड्राइंग इकाइयां लम्बे समय से ज़मीन के नीचे ज़हरीला हाइड्रोक्लोरिक एसिड डाल रही है। इनमें ज़यादातर इकाईआं फोकल पॉइंट , इंडस्ट्रियल एरिया सी और इंडस्ट्रियल एरिया ऐ में है, ये इकाइयां पहले सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल करती थी लेकिन पैसा कमाने के लालच में अँधा होकर इन वायर ड्राइंग इकाईओं ने हाइड्रोक्लोरिक एसिड का इस्तेमाल शुरू कर दिया क्यूंकी हाइड्रोक्लोरिक एसिड की कीमत सल्फ्यूरिक एसिड के मुकाबले मात्र दस प्रतिशत ही है। इन सभी वायर ड्राइंग इकाइयों ने पंजाब प्रदूषण कण्ट्रोल विभाग की आँखों में धूल झोंकने के लिए विभाग से कंसेंट ले रखी है , कुछ ने अपनी कंसेंट पर सल्फुरिक एसिड, कुछ ने स्पेंट एसिड और मात्र कुछ इकाईओं ने हाइड्रोक्लोरिक एसिड लिखवा रखा है , हर महीने दो लाख टन तार खिचाई करने वाली इन सौ इकाइयों की प्रदूषण विभाग से कुल कंसेंट मात्र 2 लाख लीटर के लगभग ही है। अगर इस औसत को देखा जाये तो प्रति टन पिकलिंग के पीछे 1 लीटर पानी का इस्तेमाल ही दिखाया गया है जबकी असलियत में इस पर 200 लीटर प्रति टन पानी का इस्तेमाल होता है , जिसमें 150 लीटर पानी तार की पिकलिंग और 50 लीटर पानी इसे धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इसके साथ साथ ये इकाइयां पिकलिंग के बाद फॉस्फेट का इस्तेमाल भी करती है और प्रति टन 50 लीटर पानी फॉस्फेट करने में इस्तेमाल हो हा है , इस तरह कुल मिलकर ये 100 इकाईआं प्रति माह 4 करोड़ लीटर हाइड्रोक्लोरिक स्पेंट एसिड और 1 करोड़ लीटर फॉस्फेट वेस्ट का सृजन कर रही है। अगर विभाग की तरफ से इनके पास मात्र दो लाख लीटर हाइड्रोक्लोरिक एसिड उठाने की मजूरी है तो इससे स्पष्ट है के ये इकाइयां लगभग पांच करोड़ लीटर पानी ज़मीन के नीचे डाल रही है ,यहाँ तक के प्रति माह एक करोड़ लीटर फॉस्फेट केमिकल घोल का इस्तेमाल करने की जानकारी इन इकाइयों ने विभाग को दी ही नहीं है, इतना सब होने के बावजूद विभाग की चुप्पी बड़े सवाल पैदा कर रही है। यहाँ पर कई इकाइयां ऐसी है जो महीने का 3000 से 8000 टन तार खिचाई कर रही है लेकिन इनके पास विभाग से मात्र 2000 लीटर से 12000 लीटर तेज़ाबी पानी उठवाने की ही अनुमति है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की के इन इकाईओं का उत्पादन कितना है जबकी कंसेंट लेने से पहले सभी उद्योगों को अपनी प्रोडक्शन विभाग को बताना अनिवार्य है , विभाग की इन इकाईओं पर दरियादिली स्पष्ट कर रही है के दाल में कुछ काला है ,लेकिन अब इन इकाईओं की शिकायत राज्य के प्रदूषण विभाग की जगह पर्यावरण मंत्रालय तक पहुँच गई है, इस लिए शायद अब ज़मीन के पानी में करोडो लीटर ज़हर डालने वाली इन इकाईओं का बच निकलना नामुमक़िन है , एक स्वयंसेवी संस्था सोसाइटी फॉर एनवायरनमेंट एंड एजुकेशन केयर ने इन इकाईओं का पूरा चिटठा पर्यावरण मंत्रालय के सामने खोल दिया है , सोसाइटी के अध्यक्ष विशाल कलसी ने बताया के पर्यावरण को दूषित काने वाली इन इकाईओं की जानकारी , नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल , केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग और पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी गई है। संस्था ने पिछले एक माह में ये भी पता लगाया है के कुछ बड़े तार खिचाई के कारखानों में कितने लीटर हाइड्रोक्लोरिक एसिड का इस्तेमाल हो रहा है , हाइड्रोक्लोरिक एसिड सप्लाई करने वाली गाडिओं की वीडियोग्राफी भी की गई है, ज़यादातर तार खिचाई करने वाली बड़ी इकाईओं में रोज़ाना हज़ारों लीटर हेड्रोक्लोरिक एसिड आ रहा है, तेज़ाब इस्तेमाल करने वाली गाडिओं के चालकों से बात की गई तो पता चला है के ज़यादातर इकाइयां हाइड्रोक्लोरिक एसिड बिना बिल के मंगवा रही है। अब देखना है के पर्यावरण विभाग इन दोषिओं पर क्या कार्रवाई करता है , इस सम्बन्ध में जब पंजाब प्रदूषण नियंत्रण विभाग के चैयरमेन डॉक्टर आदर्श पाल विग से बात करने की कोशिश की गई4 करोड़ लीटर हाइड्रोक्लोरिक स्पेंट एसिड और एक करोड़ लीटर फॉस्फेट वेस्ट सीधा ज़मीन में डालो नहीं पूछेगा कोई