लुधियाना 13 दिसंबर (नेशनल डेस्क)
आईयूसीएन ने जारी की मछलियों के जीवित रहने पर रिपोर्ट
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी नए विश्लेषण के मुताबिक वैश्विक स्तर पर ताजे पानी में पाई जाने वाली मछलियों की करीब एक चौथाई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। आईयूसीएन से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके लिए प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे कारण जिम्मेवार हैं।
दुनिया भर में ताजे पानी में पाए जाने वाली मछलियों के इस पहले व्यापक मूल्यांकन से पता चला है कि अध्ययन की गई मछलियों की 14,898 प्रजातियों में से 3,086 खतरे में हैं। मतलब की यदि इन पर अभी ध्यान न दिया गया तो वो जल्द ही विलुप्त हो सकती हैं। इतना ही नहीं विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि जलवायु में आता बदलाव खतरे में पड़ी इन मछलियों की करीब 17 फीसदी प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन के चलते नदियों, जलस्रोतों के जलस्तर में आती गिरावट, बदलता मौसम और समुद्री जल का नदियों में ऊपर की ओर बढ़ना जैसे कारक जिम्मेवार हैं।देखा जाए तो इस बढ़ते संकट के लिए प्रदूषण भी कम जिम्मेवार नहीं है, यह ताजे पानी में पाई जाने वाली मछलियों की उन 57 फीसदी प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है, जिनपर विलुप्त होने का खतरा मंडरा है। इसी तरह बांध और पानी का बढ़ता दोहन 45 फीसदी संकटग्रस्त प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है।
वहीं आक्रामक प्रजातियां और बीमारी, मीठे पानी की 33 फीसदी संकटग्रस्त मछली प्रजातियों को नुकसान पहुंचा रही हैं, जबकि इनका बढ़ता शिकार खतरे में पड़ी 25 फीसदी प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है।रिपोर्ट में आईयूसीएन ने केन्या में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बड़े दातों वाली मछली लेक तुर्काना रॉबर (ब्राइसिनस फेरॉक्स) नामक प्रजाति का जिक्र करते हुए लिखा है कि यह मछली जो कभी आईयूसीएन रेड लिस्ट में कम चिंताजनक प्रजातियों की श्रेणी में थी वो अब खतरे में पड़ गई है। इसके लिए बढ़ता शिकार, जलवायु परिवर्तन के चलते आवास में आती गिरावट, और बांधों की वजह से पानी के प्रवाह में आती कमी जैसे कारणों को जिम्मेवार ठहराया गया
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